09 February 2008

भारत में हिन्दी हाइकु कविता-2

भारत में हिन्दी हाइकु कविता
-डॉ० जगदीश व्योम

कविता व्यक्ति से व्यक्ति को ही जोड़ने का काम नहीं करती वल्कि कविता विभिन्न समाजों व देशों की संास्कृतिक परम्पराओं, उत्सवों, लोक जीवन, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं समस्त भूमण्डल पर व्याप्त तमाम जानकारियाँ एक-दूसरे को देकर उनके मध्य एक सेतु का कार्य करती है। हाइकु कविता इस दिशा में सबसे आगे है और विश्व स्तर पर सबसे अधिक लोकप्रिय भी है। शायद इसका कारण यह है कि हाइकु कविता दुनिया की सबसे छोटी कविता है।
भारतीय भाषाओं में हाइकु कविता का प्रवेश रवीन्द्रनाथ ठाकुर की जापान यात्रा से वापसी के साथ हुआ। उन्होंने जापानऱ्यात्रा से लौटने के पश्चात् सन् १९१९ में जापानी यात्री में हाइकु का परिचय देते हुए बासो की दो प्रसिद्ध हाइकु कविताओं का बंगला में अनुवाद प्रस्तुत किया। ये कविताएँ थीं-
पुरानो पुकुर / ब्यांगेर लाफ / जलेर शब्द।
(पुराना तालाब/मेंढक की कूद/ पानी की आवाज।)
पचा डाल/एकटा काक/शरत्काल।
(सूखी डाल/एक कौआ/शरत्काल।)
रवीन्द्रनाथ टैगोर की हाइकु कविताओं के अनुवाद से भारत में हाइकु कविता की चर्चा तो हुई परन्तु वह लोकप्रिय नहीं हो पाई। या यूँ कहें कि भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि में हाइकु का बीज तो बो दिया गया परन्तु उसके उगने के लिए अनुकूल हवा-पानी की आवश्यकता थी, और यह हवा-पानी मिला अज्ञेय के माध्यम से। हाइकु के सफल प्रयोग अज्ञेय ने छठे दशक (१९६०) में अरी ओ करुणा प्रभामय(१९५९) में किए। इसमें अनेक हाइकुनुमा छोटी कविताएँ हैं जो हाइकु के बहुत निकट हैं।
भारत में जापानी भाषा के विशेषज्ञ प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा ने १९७७ में जापानी कविताएँ शीर्षक से १० ताँका और ४० जापानी हाइकु कविताओं का मूल जापानी से सीधे हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत किया। इसमें जापानी लिपि में मूल कविता उसके देवनागरी लिप्यंतरण के साथ दी गई है।
प्रो० वर्मा ने १९७८ में भारतीय हाइकु क्लब की स्थापना के साथ हाइकु नाम से एक नियमित अन्तर्देशीय पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। यह पत्र भारत में हिन्दी हाइकु का ध्वज वाहक बन गया। इस पत्र ने हाइकु कविता के प्रति भारतीय साहित्यकारों में काफी रुचि जगाई।
प्रो० सत्यभूषण वर्मा ने भारत में हाइकु कविता को सही रूप में स्थापित करने तथा उसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया।
प्रो० वर्मा की प्रेरणा से कमलेश भट्ट कमल ने हाइकु-१९८९ तथा हाइकु-१९९९ का संपादन किया। इनमें क्रमश: ३० और ४० हिन्दी हाइकुकारों के ७-७ हाइकु लिए गए।
डॉ० भगवतशरण अग्रवाल ने हाइकु भारती पत्रिका के माध्यम से हाइकुकारों को एक मंच दिया जिससे हाइकु के प्रति लागों में रुचि उत्पन्न हुई ।
हाइकु दर्पण पत्रिका का प्रकाशन से सन् २००० में होशंगाबाद (म०प्र०) से प्रारम्भ हुआ। इस पत्रिका में हाइकु कविता के सम्बंध में जानकारी के साथ-साथ तथा हिन्दी हाइकुकारों के हाइकु प्रकाशित किए किए जा रहे हैं। यह पत्रिका हाइकु कविता के लिए समर्पित पत्रिका है। अब इसे द्विभाषीय कर दिया गया है। इसके हिन्दी भाग का संपादन डॉ० जगदीश व्योम तथा अंग्रेजी भाग का डॉ० अंजलि देवधर कर रही हैं। हाइकु दर्पण में सदस्य हाइकुकारों की रचनाओं के साथ-साथ अतिथि हाइकुकारों की हाइकु रचनाओं को प्रकाशित किया जाएगा। आप लोगों की श्रेष्ठ हाइकु रचनाओं का हाइकु दर्पण में स्वागत है।
हिन्दी हाइकु कविताओं को लगभग सभी पत्रिकाएँ सम्मान सहित प्रकाशित कर रहे हैं। इण्टरनेट पर हिन्दी हाइकु कविताओं के लिए www.hindigagan.com हिन्दी गगन जालघर को देखा जा सकता है। हाइकु के लिए द्विभाषीय जालघर www.haikusansar.com का निर्माण किया गया है जिससे हिन्दी हाइकु तथा हाइकुकारों का सम्बंध वैश्विक स्तर पर हो सके।
डॉ० अंजलि देवधर ने ओगुरा ह्याकुनिन इश्शु १०० कवियों की १०० कविताएँ, मासाओका शिकि तथा विश्वभर से बच्चों के हाइकु : हाइकु प्रवेशिका जैसी पुस्तकों को हिन्दी तथा अँग्रेजी दोनों भाषाओं में भारतीय हाइकु पाठकों के लिए संपादित व प्रकाशित किया है। 'विश्वभर से बच्चों के हाइकु : हाइकु प्रवेशिका` की चर्चा पूरे हिन्दी हाइकु जगत में है। इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय बच्चों के बीच हाइकु पहुँचते देर नहीं लगेगी और बच्चों के बीच यह बहुत लोकप्रिय होगा यदि यह अति मह>वपूर्ण पुस्तक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के बीच पहुँच सके तो।
भारत में हिन्दी हाइकु कविताओं के लगभग २०० से अधिक संग्रह अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें कई हाइकु पर आलोचनात्मक पुस्तकें भी हैं। इनकी सूची मेरे एक अन्य लेख के साथ www.abhivyakti-hindi.org पर देखी जा सकती है।
लखनऊ विश्वविद्यालय से डॉ० करुणेशप्रकाश भट्ट ने हाइकु पर अपना शोध पूर्ण किया है। इसके अतिरिक्त मेरठ, आगरा एवं अन्य कई विश्वविद्यालयों में हाइकु कविता पर शोधकार्य हो रहे हैं।
वर्तमान समय में हिन्दी हाइकु लिखने वालों की संख्या काफी अधिक है। इनमें कुछ हाइकुकार गम्भीरता के साथ हाइकु सृजन कार्य में लगे हुए हैं किन्तु कुछ रचनाकार हाइकु के मर्म को अभी समझ रहे हैं। हिन्दी हाइकु में तीन पंक्तियों और सत्रह अक्षर (५-७-५) के बंधन के साथ हाइकु लिखे जा रहे हैं, इनमें पूरी तरह से भारतीय परिवेश को समाहित किया जा रहा है। इस समय लगभग १०० से अधिक हाइकु कवि काफी गम्भीरता के साथ हाइकु लिख रहे हैं।
हाइकु कविता जितनी तेजी के साथ विश्वभर में लोकप्रिय हुई है उसी गति से उसकी विषयवस्तु में भी विस्तार होता जा रहा है। भारत वर्ष में हिन्दी हाइकु लिखने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है तथा प्रवासी भारतीयों में हाइकु को लेकर विशेष उत्साह है। आज जब हम वैश्विक स्तर पर अप्रत्याशित रूप से एक-दूसरे के निकट आ रहे हैं, एक-दूसरे के तमाम अनुभवोें से लाभ उठाकर आम आदमी के लिए सुख सुविधाएँ मुहैया करा रहे हैं, भाषाई दरारों को सम्पर्क भाषा के सेतु बनाकर पाटा जा रहा है। सुधी पाठकों के मध्य भाषाई दीवार बाधा न बन सके इस दिशा में इस प्रकार के आयोजन बहुत सामयिक तथा प्रासंगिक हैं।
जय हिन्द ! जय भारत !!

डॉ० जगदीश व्योम
संपादक
हाइकु दर्पण

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