03 April 2008

हाइकु संसार

हाइकु संसार

सरसों पीली
जर्द हो गया रंग
सूरज का भी।
-डॉ० सुरेन्द्र वर्मा, हाइकु दर्पण, मई-२००२

लो खुल गई
सूरज की गठरी
बिखरा दिन।

कोयल घोले
कुहुक कुहुक के
टोना वन में।
-पूर्णिमा वर्मन, हाइकु दर्पण, जून-२००६


फटा पड़ा है
हजार टुकड़ों में
पोखर दिल।

धूप ने छला
काला हुआ हिरन
पानी न मिला।
-डॉ० सुधा गुप्ता, हाइकु दर्पण, जून-२००६


गर्मी बढ़ी तो
बढ़ा ली पीपल ने
हरियाली भी।
-कमलेश भट्ट कमल, हाइकु दर्पण, जून-२००६

धूप किशोरी
बैठी नकाब ओढ़े
धूर्त कोहरा।
-डॉ० शैल रस्तोगी, हाइकु दर्पण, जून-२००६

मन केसर
प्राण कनेर हुए
स्मृतियाँ चंपा।
-डॉ० शैल रस्तोगी, हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ हाइकु, सं० रमाकान्त, पृ०-८०

फूली सरसों
बाँचे कथा वसंती
खेतों में धूप।
-कृष्ण शलभ, हाइकु दर्पण, मार्च-२००४

फूलों की टोपी
हरियाली का कुर्ता
दूल्हा वसंत।

कोयल गाती
हरी आम की शाख
आग लगाती।
-डॉ० सुधा गुप्ता, खुशबू का सफर, पृ०-४४, ५५

झरा पराग
माटी की देह चली
लेने वैराग।

कहो पहाड़
तुम्हारी देह है या
हाड़ ही हाड़।
-रामसुमेर मधुपर्क, हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ हाइकु, सं० रमाकान्त, पृ०-६३

फूले पलाश
जंगल में दहकी
रंगों की आग।
-शैल सक्सेना, हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ हाइकु, सं० रमाकान्त, पृ०-७६

उकड़ूँ बैठी
शर्मसार पहाड़ी
ढूँढ़ती साड़ी।
-उर्मिला कौल, अविरल मंथन, पृ०-२९

लू से झुलसी
जेठ की दुपहरी
कराहें पंखे।
-भगवतशरण अग्रवाल, 'हूँ भी नहीं भी`, पृ०-३९

No comments: