10 May 2018

भारत में हिन्दी हाइकु कविता

भारत में हिन्दी हाइकु कविता-डॉ० जगदीश व्योम


कविता व्यक्ति से व्यक्ति को ही जोड़ने का काम नहीं करती वल्कि कविता विभिन्न समाजों व देशों की संास्कृतिक परम्पराओं, उत्सवों, लोक जीवन, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं समस्त भूमण्डल पर व्याप्त तमाम जानकारियाँ एक-दूसरे को देकर उनके मध्य एक सेतु का कार्य करती है। हाइकु कविता इस दिशा में सबसे आगे है और विश्व स्तर पर सबसे अधिक लोकप्रिय भी है। शायद इसका कारण यह है कि हाइकु कविता दुनिया की सबसे छोटी कविता है। लेकिन एक अच्छे हाइकु का जादुई प्रभाव श्रोता या पाठक पर पड़ता है। प्रो० सत्यभूष्ण वर्मा के अनुसार- "एक अच्छा हाइकु हृदय-सरोवर में फेंकी गई कंकड़ी है जो भाव-लहरियों को तरंगित कर अनुभूति और चेतना को झकझोर देता है। ........... हाइकु का प्रकृति के साथ अविच्छन्न सम्बंध है, परन्तु हाइकु प्रकृति काव्य नहीं है। वह मानवीय संवेदनाओं और दृश्य जगत की सौन्दर्य बोध जनित गहन अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति की अतुकान्त कविता है।"
भारतीय भाषाओं में हाइकु कविता का प्रवेश रवीन्द्रनाथ ठाकुर की जापान यात्रा से वापसी के साथ हुआ। उन्होंने जापान यात्रा से लौटने के पश्चात् सन् १९१९ में जापानी यात्री में हाइकु का परिचय देते हुए बासो की दो प्रसिद्ध हाइकु कविताओं का बंगला में अनुवाद प्रस्तुत किया। ये कविताएँ थीं-
पुरानो पुकुर / ब्यांगेर लाफ / जलेर शब्द।
(पुराना तालाब/मेंढक की कूद/ पानी की आवाज।)
पचा डाल/एकटा काक/शरत्काल।
(सूखी डाल/एक कौआ/शरत्काल।)
रवीन्द्रनाथ टैगोर की हाइकु कविताओं के अनुवाद से भारत में हाइकु कविता की चर्चा तो हुई परन्तु वह लोकप्रिय नहीं हो पाई। या यूँ कहें कि भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि में हाइकु का बीज तो बो दिया गया परन्तु उसके उगने के लिए अनुकूल हवा-पानी की आवश्यकता थी, और यह हवा-पानी मिला अज्ञेय के माध्यम से। हाइकु के सफल प्रयोग अज्ञेय ने छठे दशक (१९६०) में अरी ओ करुणा प्रभामय(१९५९) में किए। इसमें अनेक हाइकुनुमा छोटी कविताएँ हैं जो हाइकु के बहुत निकट हैं।
भारत में जापानी भाषा के विशेषज्ञ प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा ने १९७७ में जापानी कविताएँ शीर्षक से १० ताँका और ४० जापानी हाइकु कविताओं का मूल जापानी से सीधे हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत किया। इसमें जापानी लिपि में मूल कविता उसके देवनागरी लिप्यंतरण के साथ दी गई है।
प्रो० वर्मा ने भारत में १९७८ में भारतीय हाइकु क्लब की स्थापना के साथ हाइकु नाम से एक नियमित अन्तर्देशीय प. का प्रकाशन प्रारम्भ किया। यह पत्र भारत में हिन्दी हाइकु का ध्वज वाहक बन गया। इस पत्र ने हाइकु कविता के प्रति भारतीय साहित्यकारों में काफी रुचि जगाई। हाइकु पत्र से जुड़े कुछ नाम हैं- सत्यानन्द जावा, उर्मिला कौल, प्रतिभा वेदज्ञ, रामकृष्ण विकलेश, सतीश दुबे, वेदा आर्य, सत्यपाल चुघ, सावित्री डागा, कमला रत्नम्, शैल रस्तोगी, राधेश्याम, पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी, मोतीलाल जोतवाणी, कमलकिशोर गोयनका, मोहन कात्याल, विद्याविन्दु सिंह आदि। (जापानी हाइकु और आधुनिक हिन्दी कविता, पृ०-१०५)
प्रो० सत्यभूषण वर्मा ने भारत में हाइकु कविता को सही रूप में स्थापित करने तथा उसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया। जापानी भाषा के विद्वान होने के नाते उन्होंने जापानी हाइकु की मूल आत्मा को अपने अनुवादों में सुरक्षित बचा पाया और पाठकों तक जापानी हाइकु की भाव-सम्पदा का सम्प्रेषित किया।
प्रो० वर्मा की प्रेरणा से कमलेश भट्ट कमल तथा रामनिवास पंथी ने हाइकु-१९८९ का संपादन किया। इसमें ३० भारतीय हिन्दी हाइकुकारों के ७-७ हाइकु लिए गए। इसके दस वर्ष बाद कमलेश भट्ट कमल ने ही हाइकु-१९९९ का संपादन किया। इसमें ४० भारतीय हिन्दी हाइकुकारों के ७-७ हाइकु लिए गए।
अहमदाबाद से डॉ० भगवतशरण अग्रवाल ने हाइकु भारती पत्रिका के माध्यम से हाइकु कारों को जोड़ा।
प्रो० वर्मा की ही प्रेरणा से डॉ० जगदीश व्योम ने हाइकु दर्पण पत्रिका का संपादन होशंगाबाद(मध्य-प्रदेश) से किया। यह पत्रिका हाइकु को समर्पित है जिसे अब हिन्दी तथा अँग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित किया जा रहा है।
हिन्दी हाइकु कविताओं को लगभग सभी पत्रिकाएँ सम्मान सहित प्रकाशित कर रहे हैं। वर्तमान समय में इण्टरनेट पर हिन्दी हाइकु कविताओं के लिए अनेक वेबसाइटें हैं, इनमें प्रमुख हैं-
www.hindigagan.com
www.anubhuti-hindi.org
www.abhivyakti-hindi.org
www.haikudarpan.blogspot.com
www.haikukanan.blogspot.com
www.hindisahitya.blogspot.com
www.haikusansar.com
अनुभूति वेबसाइट पर हाइकु कविताओं के प्रकाशन के लिए हाइकु माह जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जा चुका है, इसके अन्तर्गत पूरे माह प्रतिदिन एक चुने हुए हाइकु को बहुत सुन्दर चित्र के साथ प्रकाशित किया गया। विश्व के तमाम देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय हिन्दी हाइकु लिख रहे हैं जिन्हें हाइकु दर्पण तथा वेबसाइटों पर प्रकाशित किया जा रहा है।
डॉ० अंजलि देवधर ने ओगुरा ह्याकुनिन इश्शु , मासाओका शिकि तथा विश्वभर से बच्चों के हाइकु : हाइकु प्रवेशिका जैसी पुस्तकों को हिन्दी तथा अँग्रेजी दोनों भाषाओं में भारतीय हाइकु पाठकों के लिए संपादन व प्रकाशन किया है। 'विश्वभर से बच्चों के हाइकु : हाइकु प्रवेशिका` की चर्चा पूरे हिन्दी हाइकु जगत में है। इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय बच्चों के बीच हाइकु पहुँचते देर नहीं लगेगी और बच्चों के बीच यह बहुत लोकप्रिय होगा।
भारत में हिन्दी हाइकु कविताओं के लगभग २०० संग्रह अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें कई हाइकु पर आलोचनात्मक पुस्तकें हैं।
भारतीय कविता पर हाइकु का प्रभाव-
भारतीय हिन्दी कविता पर हाइकु कविता का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। अज्ञेल की एक प्रसिद्ध कविता है जिसे उन्होंने १९५१ में लिखा थे-
उड़ गई चिड़िया
काँपी, फिर
थिर हो गयी पत्ती। -(अज्ञेय)
कुछ अन्य कविताएँ-
मुझे अब लौटना है
मेरे छोटे-छोटे बच्चे
रो रहे होंगे मेरे लिए
और प्रतीक्षा में होगी
उन बच्चों की माँ भी। -(यामा नो ए नो ओकुरा)
हरिवंश राय बच्चन की कविता पर इस कविता का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है-
बच्चे प्रत्याशा में होंगे
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह सोच, परों में चिड़िया के
भरता कितनी चंचलता है
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। -(हरिवंशराय बच्चन)
पुनर्जन्म के सम्बंध में ओतोमो नो ताबितो की यह कविता तथा भवानी प्रसाद मिश्र की कविता में साम्यता है। दोनों कवि सामाजिक विद्रूपताओं को देखकर अगले जन्म में मनुष्य नहीं बनना चाहते-
जन्म लूँ
मनुष्य होकर नहीं
बनूँ मैं मदिरा का पात्र
भरा रहूँ
साके (जापानी मदिरा) से। -(ओतोमो नो ताबितो)
मुझे पंछी बनाना अबके
या मछली
या कली
और बनाना हो आदमी तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहाँ यहाँ से बेहतर आदमी हो
कमी चाहे ओर किसी की हो
पारस्परिकता की न हो। -(भवानीप्रसाद मिश्र)
कुछ अन्य कविताएँ जिन पर हाइकु कविता का प्रभाव है-
सूना-सूना पथ है उदास झरना
एक धुँधली रेखा पर टिका हुआ आसमान
जहाँ वह काली युवती हँसी थी।
-(कुछ और कविताएँ, शमशेर बहादुर सिंह, पृ०-४८)
अज्ञेय का संग्रह अरी ओ करुणा प्रभामय का प्रकाशन १९५९ में हुआ। इस संग्रह में ओय जी की १९५६ से १९५८ तक की कविताएँ हैं। इनमें से कुछ कविताएँ जापानी हाइकु कविताओं के अनुवाद हैं, कुछ पर हाइकु कविताओं का प्रभाव है-
खेत के एक डरौने पर / बैठा है डरा हुआ कौआ
पूस की हवा कटखनी बहती है।
-(अरी ओ करुणा प्रभामय, पृ०-१२१)
०००
यह क्या पलाश की लाल लहकती
आग रही कारण, जो
वन खण्डी की हवा हो चली गर्म आज।
-(अरी ओ करुणा प्रभामय, पृ०-६३)
०००
पति सेवारत साँझ/ उचकता देख पराया चाँद/ ललाकर ओट हो गयी।
-(अरी ओ करुणा प्रभामय, पृ०-६७)
०००
उगता चाँद, डूबता सूरज/ बीच झील-सी/ पीली सरसों फूली। -(अज्ञेय)
०००
वर्षा मंे वसंत को मैंने देखा
छाता एक, एक बरसाती
साथ-साथ जाते बतियाते। -(अज्ञेय)
०००
केदारनाथ अग्रवाल की छोटी-छोटी कविताओं पर भी हाइकु कविता का प्रभाव दिखाई देता है। कवि जिस रूप में केन नदी के पानी को देखता है, उसी रूप में उसे चित्रित कर देता है और प्रकारान्तर से बहुत कुछ कह देता है-
केन कूल का कर्मठ पानी
चट्टानों के ऊपर चढ़कर
मार रहा है घूँसे कसकर
तोड़ रहा है तट चट्टानी। -(केदारनाथ अग्रवाल)
०००
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है। -(शमशेर बहादुर सिंह)
०००
भई सूरज!
जरा इस आदमी को जगाओ
भई पवन!
जरा इस आदमी को हिलाओ
यह आदमी
जो सोया पड़ा है। -(पं० भवानी प्रसाद मिश्र)
०००
मेंने उसको जब-जब देखा
लोहा देखा
लोहा जैसा तपते देखा, गलते देखा
ढलते देखा
मैंने उसको गोली जैसा चलते देखा। -(केदारनाथ अग्रवाल)
०००
कैसे जिएँ कठिन है टक्कर
निर्बल हम, बलवान है मक्कर
तिल झन ताबड़तोड़ कराकर
हड्डी की लोहे से टक्कर। -(केदारनाथ अग्रवाल)
०००
चोली फटी सरस सरसों की
नीचे गिरा फागुनी लहँगा
ऊपर उड़ी चुनरिया नीली
देखो हुई पहाड़ी विवसन
आतपतप्ता। -(केदारनाथ अग्रवाल)
०००
कुछ हिन्दी हाइकु कविताएँ-
वर्तमान समय में हिन्दी हाइकु कविता लिखने वालों की संख्या काफी अधिक है। इनमें कुछ हाइकुकार गम्भीरता के साथ हाइकु सृजन कार्य में लगे हुए हैं किन्तु कुछ रचनाकार हाइकु के मर्म को अभी समझ रहे हैं। हिन्दी हाइकु में तीन पंक्तियों और सत्रह अक्षर (५-७-५) के बंधन के साथ हाइकु लिखे जा रहे हैं। इस समय लगभग १०० से अधिक हाइकु कवि काफी गम्भीरता के साथ हाइकु लिख रहे हैं। कुछ हाइकु यहाँ प्रस्तुत हैं-
पत्ते गिरेंगे /मौसम के पृष्ठों पर/ गीत छपेंगे। -सुरेश कुमार
पत्तों ने कहा/ इतना ही था साथ/ पेड़ रो दिए। -अशोक आनन
छिड़ा जो युद्ध/ रोयेगी मानवता/ हँसेंगे गिद्ध। -डॉ० जगदीश व्योम
सजे हुए हैं/ पलाश की दूकान/ लाल झूमके। -नलिनी कान्त
ऊँट मेमना/ दूर क्षितिज पर/ जुड़े बादल। -प्रो. आदित्यप्रताप सिंह
नभ की पर्त/ चीर गई चिड़िया/ देखा साहस। -मदनमोहन उपेन्द्र
झाँझी तू बोल/ गुम हो गए कैसे/ टेसू के बोल। -सन्तोष कुमार सिंह
खिले कमल/ जलाशय ने खोले/ सहस्र नेत्र। -रमाकान्त श्रीवास्तव
तोड़ देता है/ झूठ के पहाड़ को/ राई सा सच। -कमलेश भट्ट कमल
ओढ़ के सोई/ कोहरे की चादर/ जाड़े की रात। -डॉ० राजेन्द्र जयपुरिया
उकड़ूँ बैठी/ शर्मसार पहाड़ी/ ढूँढ़ती साड़ी। -उर्मिला कौल
पहाड़ रोया/ अनेक धार आँसू/ झरना बहा। -अशेष वाजपेई
बच्चा हँसा/ कायनात हँस दी/ सूरज उगा। -सरला अग्रवाल
उगा जो चाँद/ चुपके चुरा लाई/ युवती झील। -डॉ० शैल रस्तोगी
जले अलाव/ हाथ तापने लगी/ कुबड़ी हवा। -डॉ० शैल रस्तोगी
चैता डाकिया/ वसंत के आँगन/ प्रेमी की पाती। -डॉ० रामनारायन पटेल 'राम`
बूँद ओ बूँद/ रुक, मैं लाऊँ सीप/ बन तू मोती। -पारस दासोत
उछल रहे/ बादलांे की गोद में/ बाल खरहे। -रामनिवास पंथी
पीपल पत्ते/ ताली बजाते, देख/ बूँदों का नाच। -डॉ० सुधा गुप्ता
नाचती हवा/ ढफली बजाता है/ प्रेमी महुआ। -डॉ० सुधा गुप्ता
कुनमुनाया/ बादल के कंधे पे/ उनींदा चाँद। -डॉ० सुधा गुप्ता
कौन मानगा/ सबसे कठिन है/ सरल होना। -कमलेश भट्ट कमल
नदी कुँवारी/ डूब मरी बेचारी/ पाँव थे भारी। -गोविन्द नारायण मिश्र
छिड़ा जो युद्ध/ रोयेगी मानवता/ हँसेंगे गिद्ध। -डॉ० जगदीश व्योम
उषा ने फेंका/ स्वर्ण किरण जाल/ सूरज फँसा। -राधेश्याम
पतझर में/ बैठा उघारे तन/ सूना जंगल। -शम्भुदयाल सिंह 'सुधाकर`

साधु सन्त से/ लँगोटी बाँधे आये/ चिनार पत्ते। -रामनिवास पंथी

हाइकु कविता जितनी तेजी के साथ विश्वभर में लोकप्रिय हुई है उसी गति से उसकी विषयवस्तु में भी विस्तार होता जा रहा है। भारत वर्ष में हिन्दी हाइकु लिखने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है तथा प्रवासी भारतीयों में हाइकु को लेकर विशेष उत्साह है। आज जब हम वैश्विक स्तर पर अप्रत्याशित रूप से एक-दूसरे के निकट आ रहे हैं, एक-दूसरे के तमाम अनुभवोें से लाभ उठाकर आम आदमी के लिए सुख सुविधाएँ मुहैया करा रहे हैं, भाषाई दरारों को सम्पर्क भाषा के सेतु निर्मित करके पाटा जा रहा है, भावों के शिखरों पर फहर रहे ध्वज एक-दूसरे के साथ अनुभूति-रस का आदान-प्रदान कर रहे हैं। यह सब देखकर सुखद अनुभूति होती है। हिन्दी हाइकु पाठक अंग्रेजी हाइकु पढ़ें आर समझें तथा अंग्रेजी हाइकु पाठक हिन्दी में लिखे जा रहे हाइकु पढ़ सकें, सुधी पाठकों के मध्य भाषाई अवरोध बाधक न बन सके इस दिशा में इस प्रकार के प्रयास बहुत सामयिक तथा प्रासंगिक हैं।
डॉ० जगदीश व्योम
संपादक
हाइकु दर्पण

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